सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी 1831 - 10 मार्च 1897) भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं। उनके योगदान ने भारतीय समाज में शिक्षा, समानता और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं:
1. **महिलाओं की शिक्षा**:
- सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में **लड़कियों के लिए पहला स्कूल** स्थापित किया। उस समय यह एक साहसिक कदम था, क्योंकि समाज में लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था।
- उन्होंने विभिन्न जातियों की लड़कियों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले और स्वयं शिक्षिका के रूप में कार्य किया। उनके स्कूलों में दलित और शोषित वर्गों की लड़कियों को भी शिक्षा दी गई।
- 1852 तक उन्होंने और ज्योतिबा ने 18 स्कूल स्थापित किए।
2. **सामाजिक सुधार**:
- सावित्रीबाई ने जाति व्यवस्था, बाल विवाह, सती प्रथा और विधवा उत्पीड़न जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।
- उन्होंने **विधवाओं के लिए आश्रय स्थल** शुरू किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया, जो उस समय समाज में अस्वीकार्य था।
- 1853 में उन्होंने गर्भवती विधवाओं और बलात्कार पीड़िताओं के लिए एक **"बाल हत्या प्रतिबंधक गृह"** खोला, ताकि नवजात शिशुओं की हत्या को रोका जा सके।
3. **सत्यशोधक समाज**:
- सावित्रीबाई ने ज्योतिबा के साथ मिलकर 1873 में **सत्यशोधक समाज** की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संगठन सामाजिक समानता, शोषण के खिलाफ और अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए कार्य करता था।
- उन्होंने इस मंच के माध्यम से दलितों, शूद्रों और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
4. **कविता और लेखन**:
- सावित्रीबाई एक कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएँ, जैसे **"काव्य फुले"** (1854) और **"बावनकशी सुबोध रत्नाकर"**, सामाजिक सुधार और शिक्षा के महत्व को दर्शाती थीं।
- उनकी रचनाएँ लोगों को जागरूक करने और समाज में बदलाव लाने का माध्यम बनीं।
5. **महामारी में सेवा**:
- 1897 में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई ने पुणे में बीमारों की सेवा की। इस दौरान एक बच्चे की जान बचाने के प्रयास में वे स्वयं प्लेग से संक्रमित हो गईं और उनकी मृत्यु हो गई।
**प्रभाव**:
सावित्रीबाई फुले ने उस दौर में महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा और सम्मान की राह बनाई, जब समाज में इन वर्गों को कोई अधिकार नहीं थे। उनके साहस, समर्पण और कार्यों ने लाखों लोगों को प्रेरित किया। वे आज भी नारी शिक्षा और सामाजिक समानता की प्रतीक हैं।
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